पाकिस्तान और अफगान तालिबान के बीच हाल की इंस्टांबुल वार्ताओं का असफल होना एक बार फिर साबित करता है कि पाकिस्तानी अधिकारियों में बातचीत और कूटनीतिक कौशल की गंभीर कमी है। तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान (टीटीपी) जैसे समूहों से निपटने के लिए पाकिस्तान ने कई प्रयास किए, लेकिन हर बार विफलता ही हाथ लगी। 2025 में तुर्की और कतर की मध्यस्थता वाली चार दिवसीय वार्ता में पाकिस्तानी प्रतिनिधिमंडल की असंगठित, असभ्य और असंगत व्यवहार ने बातचीत को पटरी से उतार दिया।
टीटीपी ने 2024 में 600 से अधिक हमले किए, और 2025 में यह संख्या पहले ही पार हो चुकी है। पाकिस्तान के सीमावर्ती इलाकों में सैनिकों और नागरिकों की हत्याएं बढ़ रही हैं, लेकिन कूटनीतिक स्तर पर कोई ठोस समाधान नहीं निकल रहा। यह लेख पाकिस्तानी अधिकारियों की कमियों पर प्रकाश डालता है।
पृष्ठभूमि: टीटीपी समस्या और विफल वार्ताएं
2021 में अफगान तालिबान के सत्ता में आने के बाद पाकिस्तान ने उम्मीद की थी कि टीटीपी पर नियंत्रण हो जाएगा। लेकिन उल्टा हुआ। टीटीपी ने अफगानिस्तान को अपना सुरक्षित ठिकाना बना लिया, और सीमा पार हमले बढ़ गए। पाकिस्तान ने 2021 से ही अफगान तालिबान के माध्यम से टीटीपी से सीधी बातचीत की कोशिश की, लेकिन यह विफल रही। 2022 में पाकिस्तानी सेना ने संसदीय मंजूरी ली, लेकिन तालिबान की दोहरी नीति ने सब बर्बाद कर दिया।
हाल की इंस्टांबुल वार्ता (अक्टूबर 2025) में पाकिस्तानी प्रतिनिधिमंडल ने तालिबान से लिखित गारंटी मांगी कि अफगान मिट्टी का इस्तेमाल पाकिस्तान के खिलाफ न हो। लेकिन अफगान पक्ष ने कहा कि टीटीपी पाकिस्तानी नागरिक हैं, उनका नियंत्रण काबुल के बस की बात नहीं। फिर भी, पाकिस्तानी अधिकारियों ने असंगत रुख अपनाया। एक फोन कॉल पर उनका स्टैंड बदल गया, जिससे मध्यस्थ हैरान रह गए।
कूटनीतिक असफलताओं के प्रमुख उदाहरण
पाकिस्तानी अधिकारियों की कमियां स्पष्ट हैं:
| कमी का प्रकार | उदाहरण | परिणाम |
|---|---|---|
| असंगठित प्रतिनिधिमंडल | आईएसआई के मेजर जनरल शहाब असलम ने तालिबान से टीटीपी को “समन और कंट्रोल” करने को कहा, लेकिन सिविलियन और मिलिट्री के बीच समन्वय की कमी। एक फोन कॉल पर स्टैंड रिवर्स। | वार्ता तुरंत विफल, मध्यस्थ स्तब्ध। |
| असभ्य और आक्रामक व्यवहार | अफगान मीडिया के अनुसार, पाकिस्तानी पक्ष “रूड और अनप्रोफेशनल” था। मांगें अस्वीकार्य। | तालिबान ने पाकिस्तान को जिम्मेदार ठहराया। |
| विश्वास की कमी और बैकट्रैकिंग | यूएस ड्रोन उड़ानों पर सहमति नहीं, जबकि पाकिस्तान खुद इसका इस्तेमाल करता है। | गहरी अविश्वास, युद्ध की धमकी। |
| दीर्घकालिक कूटनीति की कमी | 40 वर्षों के अफगानिस्तान संवाद के बावजूद रचनात्मक संवाद का अभाव। | टीटीपी मजबूत, हमले बढ़े। |
रक्षा मंत्री ख्वाजा आसिफ ने तालिबान को “तबाह करने” की धमकी दी, जबकि सूचना मंत्री अताउल्लाह तारर ने अलग रुख अपनाया। यह आंतरिक विभाजन कूटनीति को कमजोर करता है।
क्यों असफल हो रही हैं वार्ताएं?
- सैन्य प्रभुत्व: आईएसआई और सेना के अधिकारी बातचीत में आक्रामक रुख अपनाते हैं, सिविल अधिकारियों को दरकिनार करते हैं। यह तालिबान को भड़काता है।
- अवास्तविक मांगें: टीटीपी को “कंट्रोल” करने की मांग, जबकि तालिबान इसे पाकिस्तान का आंतरिक मामला मानते हैं।
- बाहरी कारक: यूएस ड्रोन, भारत-तालिबान निकटता पर असफल प्रतिक्रिया। पाकिस्तान की खुफिया विफलता।
- कोई वैकल्पिक रणनीति नहीं: केवल सैन्य कार्रवाई पर निर्भर, कूटनीतिक दबाव या क्षेत्रीय गठबंधन (चीन, रूस) का अपव्यय।
Author: saryusandhyanews
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