नई दिल्ली, 7 नवंबर 2025: भारतीय क्रिकेटर मोहम्मद शमी और उनकी पूर्व पत्नी हसीन जहां के बीच लंबे समय से चले आ रहे गुजारा भत्ता विवाद ने आज नया मोड़ ले लिया। सुप्रीम कोर्ट ने हसीन जहां की याचिका पर सुनवाई करते हुए केंद्रीय जांच बेंच ने सवाल उठाया कि क्या 4 लाख रुपये मासिक गुजारा भत्ता पर्याप्त नहीं है? जहां ने कलकत्ता हाईकोर्ट के 4 लाख के आदेश को चुनौती देकर 10 लाख रुपये मासिक की मांग की है, जिस पर कोर्ट ने शमी को नोटिस जारी कर जवाब मांगा है। यह मामला न केवल पारिवारिक विवाद का प्रतीक है, बल्कि सेलिब्रिटी तलाक के बाद के वित्तीय अधिकारों पर भी बहस छेड़ रहा है।
विवाद की पृष्ठभूमि: ट्रायल कोर्ट से हाईकोर्ट तक की यात्रा
मोहम्मद शमी और हसीन जहां का विवाह 2014 में हुआ था, लेकिन 2018 में जहां ने शमी पर घरेलू हिंसा, व्यभिचार और अन्य आरोप लगाते हुए तलाक की मांग की। जहां ने गुजारा भत्ता के लिए कोलकाता की एक फैमिली कोर्ट में याचिका दायर की, जहां ट्रायल कोर्ट ने शमी को उनकी बेटी आइरा और जहां के लिए 1.3 लाख रुपये मासिक गुजारा भत्ता देने का आदेश दिया। शमी ने इस फैसले को कलकत्ता हाईकोर्ट में चुनौती दी, जहां जुलाई 2025 में हाईकोर्ट ने इसे बढ़ाकर 4 लाख रुपये मासिक कर दिया। इस राशि में 1.5 लाख जहां के लिए, 1.5 लाख आइरा के लिए और 1 लाख घरेलू खर्चों के लिए निर्धारित किया गया।
हसीन जहां ने इस फैसले को अपर्याप्त बताते हुए सुप्रीम कोर्ट का रुख किया। उनकी याचिका में कहा गया है कि शमी की कमाई (बीसीसीआई केंद्रीय अनुबंध से सालाना 5 करोड़, विज्ञापनों से अतिरिक्त आय) को देखते हुए 10 लाख रुपये मासिक उचित होगा। जहां ने तर्क दिया कि मुद्रास्फीति, जीवनशैली और बेटी की शिक्षा-स्वास्थ्य खर्चों को ध्यान में रखा जाए। दूसरी ओर, शमी का पक्ष है कि 4 लाख पहले से ही पर्याप्त है और अतिरिक्त बोझ उनके करियर पर असर डालेगा।
आज की सुनवाई: सुप्रीम कोर्ट का कड़ा सवाल
सुप्रीम कोर्ट की बेंच, जिसमें जस्टिस एचआर खान्देकाे और जस्टिस एनएस सलीम ने सुनवाई की, ने हसीन जहां के वकील से सीधा सवाल किया: “क्या 4 लाख रुपये मासिक गुजारा भत्ता बहुत ज्यादा नहीं है?” बेंच ने कहा कि यह राशि पहले से ही काफी उदार है, खासकर मध्यम वर्गीय परिवारों के मानदंडों से तुलना करें तो। कोर्ट ने पश्चिम बंगाल सरकार को भी नोटिस जारी किया, क्योंकि मामला फैमिली कोर्ट से जुड़ा है। शमी को चार सप्ताह में जवाब दाखिल करने का निर्देश दिया गया है।
हसीन जहां के वकील ने बचाव में कहा कि शमी की आय स्रोत बहुआयामी हैं—क्रिकेट, ब्रांड एंडोर्समेंट्स और अन्य निवेश—जो उन्हें उच्च जीवनस्तर प्रदान करते हैं। उन्होंने जोर दिया कि गुजारा भत्ता पूर्व पति की आय का 25% तक हो सकता है, जो यहां लागू नहीं हो रहा। कोर्ट ने जवाब में कहा कि याचिका में विस्तृत खर्च विवरण पेश किया जाए, ताकि वास्तविक आवश्यकता का आकलन हो सके। सुनवाई के दौरान कोर्ट ने यह भी टिप्पणी की कि ऐसे मामलों में भावनात्मक पक्ष से ज्यादा वित्तीय पारदर्शिता जरूरी है।
प्रतिक्रियाएं: सोशल मीडिया पर बहस छिड़ी
यह खबर आते ही सोशल मीडिया पर वायरल हो गई। कई यूजर्स ने सुप्रीम कोर्ट के सवाल की सराहना की, कहते हुए कि 4 लाख मासिक किसी सामान्य परिवार के लिए सपनों जैसा है। पूर्व क्रिकेटर हरभजन सिंह ने ट्वीट किया, “न्यायिक सवाल सही दिशा में हैं। परिवार का भरण-पोषण महत्वपूर्ण, लेकिन अतिशयोक्ति नहीं।” वहीं, महिलाओं के अधिकार संगठनों ने जहां के पक्ष में आवाज उठाई, दावा किया कि सेलिब्रिटी मामलों में महिलाओं की आर्थिक स्वतंत्रता अक्सर नजरअंदाज की जाती है।
शमी के प्रशंसकों ने क्रिकेटर का समर्थन किया, कहा कि उनका करियर अनिश्चित है और चोटों के कारण आय प्रभावित हो सकती है। हसीन जहां ने एक बयान में कहा, “मैं न्याय चाहती हूं, न कि विवाद। बेटी का भविष्य सबसे ऊपर है।”
कानूनी निहितार्थ: गुजारा भत्ता निर्धारण के मानदंड
यह मामला भारतीय न्याय व्यवस्था में गुजारा भत्ता के मानदंडों पर नई बहस छेड़ रहा है। कानूनी विशेषज्ञों के अनुसार, हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 24-25 के तहत गुजारा पूर्व पति की आय, पत्नी की जरूरतें और बच्चों के हितों पर आधारित होता है। सुप्रीम कोर्ट के पुराने फैसलों में कहा गया है कि यह फिक्स्ड अमाउंट नहीं, बल्कि परिस्थितिजन्य होना चाहिए। हाल के वर्षों में मुद्रास्फीति को ध्यान में रखते हुए कई मामलों में वृद्धि हुई है, लेकिन कोर्ट ने ‘उचित’ की सीमा पर जोर दिया है।
वकील और पूर्व जज ने बताया कि अगर शमी की आय का प्रमाणीकरण हो, तो कोर्ट 10 लाख की मांग पर विचार कर सकता है, लेकिन वर्तमान में 4 लाख को ‘हैंडसम’ मानते हुए अस्वीकार करने की संभावना है।
न्याय की राह में एक कदम और
मोहम्मद शमी और हसीन जहां का यह विवाद न केवल व्यक्तिगत है, बल्कि समाज को आर्थिक न्याय के सवालों पर सोचने को मजबूर कर रहा है। सुप्रीम कोर्ट का सवाल—’4 लाख पर्याप्त क्यों नहीं?’—एक महत्वपूर्ण संकेत है कि न्याय व्यवस्था अतिशयोक्ति से बचते हुए संतुलन बनाए रखने पर जोर दे रही है। अगली सुनवाई में शमी का जवाब तय करेगा कि यह विवाद कब समाप्त होगा। तब तक, क्रिकेट प्रेमी शमी के मैदान पर प्रदर्शन पर नजर रखेंगे, जबकि कानूनी विशेषज्ञ इसकी निगरानी करते रहेंगे।
Author: saryusandhyanews
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