आयनी एयरबेस: ताजिकिस्तान की पहाड़ियों से भारत की रणनीतिक पकड़ और पाकिस्तान पर दबाव
नई दिल्ली, 6 मई — पहलगाम में हुए आतंकवादी हमले के बाद भारत की सैन्य प्रतिक्रिया को लेकर सख्त संकेत मिल रहे हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सेना को “पूर्ण परिचालन स्वतंत्रता” देते हुए तय करने की छूट दी है कि कब, कहां और कैसे जवाबी कार्रवाई की जाए। लेकिन इस तात्कालिक सैन्य प्रतिक्रियाओं के परे एक कम चर्चित पहलू दक्षिण एशिया की रणनीतिक परिपाटी पर गहरा असर डाल रहा है — ताजिकिस्तान की पहाड़ियों में स्थित आयनी एयरबेस।
आयनी एयरबेस: हिमालय के पार भारत की निगाह
दुशांबे (ताजिकिस्तान की राजधानी) से महज़ 15 किलोमीटर पश्चिम में स्थित आयनी एयरबेस कभी सोवियत युग की खंडहर हो चुकी संपत्ति थी। भारत ने 2002 में इस एयरबेस के पुनर्निर्माण में लगभग 70 मिलियन डॉलर का निवेश किया, जब अफगानिस्तान में अमेरिका के नेतृत्व वाला आतंक विरोधी अभियान अपने चरम पर था।
2010 तक भारत ने इस एयरबेस में 3,200 मीटर लंबा रनवे, कठोर शरणस्थल, ईंधन भंडार, और एयर ट्रैफिक कंट्रोल जैसे बुनियादी ढांचे का निर्माण कर इसे भारी-भरकम विमानों जैसे इल्यूशिन-76 और सुखोई-30MKI के लिए तैयार कर दिया।
एक मौन लेकिन महत्वपूर्ण रणनीतिक केंद्र
हालांकि ताजिक सरकार इस बात से इनकार करती है कि कोई विदेशी सेना उनके क्षेत्र से संचालन कर रही है, लेकिन उपग्रह चित्रों, क्षेत्रीय रिपोर्टों और रक्षा विश्लेषकों के अनुसार भारतीय वायुसेना के तकनीकी, अभियंता और सुरक्षा दल वर्षों से वहां मौजूद हैं।
यह एयरबेस पाकिस्तान की पश्चिमी सीमाओं — बलूचिस्तान और खैबर पख्तूनख्वा जैसे संवेदनशील प्रांतों — के करीब है, जिससे भारत को रणनीतिक दृष्टिकोण से एक द्वितीय मोर्चा मिलता है। किसी व्यापक संघर्ष की स्थिति में भारत न केवल कश्मीर से, बल्कि उत्तर-पश्चिम दिशा से भी दबाव बना सकता है।
पाकिस्तान की सैन्य चिंता
पाकिस्तानी रणनीतिक हलकों में यह चिंता तेजी से बढ़ रही है कि आयनी एयरबेस से भारत टोही मिशन, ड्रोन हमले या सीमित एयर स्ट्राइक जैसे ऑपरेशन शुरू कर सकता है, खासकर बलूचिस्तान जैसे अस्थिर क्षेत्रों में। इससे पाकिस्तान को अपनी सीमित हवाई निगरानी और रक्षा क्षमताओं को फैलाना पड़ सकता है, जिससे उसकी पूर्वी सीमा कमजोर हो सकती है।
चीन और अफगानिस्तान पर नजर
आयनी केवल पाकिस्तान के लिए ही नहीं, बल्कि चीन के लिए भी एक सामरिक चुनौती है। ताजिकिस्तान की सीमा चीन के शिनजियांग प्रांत से सटी हुई है। 2020 के गलवान घाटी संघर्ष के बाद भारत की नजर इस क्षेत्र में चीनी गतिविधियों पर बनी हुई है।
इसके अलावा, अफगानिस्तान में तालिबान की वापसी के बाद आईएस-खुरासान और अल-कायदा जैसे संगठनों के पुनः उभरने की आशंका को देखते हुए, आयनी एयरबेस मानवीय निकासी और निगरानी अभियानों के लिए भी उपयुक्त स्थिति में है।
मध्य एशिया में भारत का प्रभाव
आयनी के साथ-साथ भारत ने फ़रखोर एयरबेस का भी उपयोग किया है, और कथित रूप से सुखोई-30MKI विमानों को भी इन क्षेत्रों में तैनात किया है। इससे भारत की मध्य एशिया में भागीदारी और रूस-चीन के प्रभाव संतुलित करने की रणनीति भी स्पष्ट होती है।
पाकिस्तान के लिए आयनी एयरबेस एक “मौन घेराबंदी” की रणनीति जैसा प्रतीत होता है। कश्मीर में दबाव के साथ-साथ उत्तर दिशा से संभावित सैन्य दबाव रणनीतिक संतुलन को बदल सकता है। इसके अतिरिक्त, इस एयरबेस से पाकिस्तान के परमाणु ठिकानों और आर्थिक परियोजनाओं जैसे CPEC पर निगरानी की संभावना भी इन्कार नहीं की जा सकती।

Author: saryusandhyanews
SENIOR JOURNALIST ,NEWS PUBLISHED IS FOR TEST AND QUALITY PURPOSE TILL OFFICIAL LAUNCH